पार्थिव गणेश विसर्जन (अनंत चतुर्दशी) | Ganesh Visarjan 2025 (Anant Chaturdashi)
6सितम्बर 2025, शनिवार
गणेश विसर्जन के लिए शुभ मुहूर्त
प्रातः मुहूर्त (शुभ) – 07:36 ए एम से 09:10 एम
अपराह्न मुहूर्त – 12:19 पी एम से 05:02 पी एम
शाम मुहूर्त (लाभ) – 06:37 पी एम से 08:02 पी एम
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – 06सितम्बर 2025 _ 03:12 ए एम
चतुर्दशी तिथि समाप्त -07 सितम्बर 2025 _ 01:41 ए एम
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गणेश विसर्जन की शास्त्रीय विधि (अनन्त चतुर्दशी)
अनन्त चतुर्दशी को गणेशोत्सव का समापन होता है।
विसर्जन विधि –
- स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
- गणेश जी की पुनः पंचोपचार/षोडशोपचार पूजा करें (गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, दुर्वा अर्पित करें)
- गणेश जी से प्रार्थना करें – “हे गणनाथ! कृपा करके पुनः अगले वर्ष विराजमान होने की अनुमति दें। हमारे कुटुम्ब पर सदैव अपनी कृपा बनाए रखें।”
- गणपति जी को मोदक, दूर्वा, नारियल, फल आदि अर्पित करें।
- गणपति अथर्व शीर्ष का पाठ करे। व गणपति जी की आरती करे।
- प्रतिमा को उठाकर विसर्जन स्थल (नदी, तालाब, अथवा घर में जहाँ विसर्जन करना हो) पर ले जाएँ।
- विसर्जन से पहले 5 बार आरती करें।
- परिवारजन “गणपती बाप्पा मोरया, पुढ़च्या वर्षी लवकर या” कहते हुए मूर्ति को विसर्जित करें।
- विसर्जन के बाद प्रसाद बाँटें।
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अनन्त सूत्र बाँधने की शास्त्रीय विधि
अनन्त चतुर्दशी के दिन “अनन्त भगवान” (विष्णु स्वरूप) की पूजा की जाती है।
अनन्त सूत्र एक 14 गाँठों वाला डोरा (कच्चा सूत/रेशमी धागा) होता है।
इसे हल्दी/कुमकुम से रंगकर पूजा में रखा जाता है।
विधि –
- प्रातः स्नान कर व्रती पुरुष/स्त्री संकल्प लें।
- पूजा में भगवान विष्णु (शेषनाग पर विराजमान रूप) की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
- फल, पुष्प, पंचामृत, धूप, दीप आदि अर्पित करें।
- अनन्त कथा का पाठ करें। (इसमें श्रीकृष्ण द्वारा पांडवों को अनन्त भगवान की महिमा बताना आता है।)
- 14 लड्डू/मोदक, 14 फलों, 14 प्रकार के फूलों से भगवान का पूजन करें।
- पूजा के बाद अनन्त सूत्र को विष्णुजी को अर्पित कर आशीर्वाद स्वरूप ग्रहण करें।
- पुरुष दाहिने हाथ में कलाई पर बाँधें। स्त्रियाँ बाएँ हाथ में बाँधती हैं।
- बाँधते समय मंत्र बोलें – “अनन्ते चतुर्दश्यां वै विष्णुना प्रीत्यर्थं अनन्त सूत्रधारणं करिष्ये।”
अनन्त सूत्र वर्ष भर अपने हाथ पर बांध कर रखे तथा पुराना सूत्र गणेशजी के साथ विसर्जित कर दे। जो भी भक्त साल भर तक सूत्र बाँध कर नही रख सकता हो वह14 दिन तक बाँध सकता हैं।फिर किसी पवित्र नदी विसर्जित कर देना होता है। अनंत चतुर्दशी की कथा वही है जो भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। इसे अनंत व्रत कथा कहा जाता है। अनंत चतुर्दशी व्रत कथा (श्रीकृष्ण द्वारा पांडवों को सुनाई गई)
एक समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा –“हे माधव! अनंत चतुर्दशी का व्रत क्या है? इसकी विधि और महिमा मुझे बताइए।”
तब श्रीकृष्ण बोले – हे धर्मराज! प्राचीन समय में सत्ययुग में एक महान तपस्वी सुमंत नामक ब्राह्मण थे। उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उनसे एक पुत्री उत्पन्न हुई – जिसका नाम था सुषीला। कुछ समय बाद सुमंतजी की पत्नी का देहांत हो गया। उन्होंने दूसरी स्त्री कर्कशा से विवाह कर लिया। कर्कशा का स्वभाव कठोर था।
जब सुषीला बड़ी हुई, उसका विवाह कौंडिन्य ऋषि से कर दिया गया। विवाह के बाद कौंडिन्य ऋषि अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम लौट रहे थे। मार्ग में उन्हें नदी किनारे स्नान करते और व्रत करते कई स्त्रियाँ दिखीं।
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सुषीला ने उनसे पूछा – “आप कौन सा व्रत कर रही हैं?” स्त्रियों ने उत्तर दिया – “हम अनंत भगवान का व्रत कर रही हैं। इससे धन, संतति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत 14 वर्षों तक करने से सभी दुख दूर होकर अनंत सुख मिलता है।”
फिर उन्होंने व्रत की विधि बताई – शुद्ध स्थान पर भगवान विष्णु का पूजन करके, अनंत सूत्र (कुशा, रेशम अथवा सूती धागा जिसमें 14 गाँठें होती हैं) बनाकर हाथ में बाँधते हैं और अनंत भगवान का ध्यान करते हैं।
सुषीला ने वहीं स्नान करके विधिवत अनंत व्रत किया और अनंत सूत्र अपने हाथ में बाँध लिया। जब वह अपने पति कौंडिन्य के पास पहुँचीं, तो कौंडिन्य ने पूछा –“यह धागा तुम्हारे हाथ में कैसा है?” सुषीला ने सब व्रत का महत्व बतलाया।
परंतु कौंडिन्य ऋषि ने इसे अंधविश्वास समझकर अनंत सूत्र तोड़कर अग्नि में डाल दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि थोड़े ही दिनों में उनका सारा धन, वैभव और सुख नष्ट हो गया। अब कौंडिन्य और उनकी पत्नी बड़ी कठिनाई से जीवन बिताने लगे। तब कौंडिन्य को अपनी भूल का अहसास हुआ। वे वन में गए और अनंत भगवान की खोज करने लगे।
उन्होंने तपस्या की, तो अनंत भगवान स्वयं प्रकट हुए और बोले – “हे कौंडिन्य! तुमने अज्ञानवश मेरे व्रत का अपमान किया था। अब यदि तुम 14 वर्ष तक श्रद्धापूर्वक अनंत व्रत करोगे तो तुम्हारे सब दुख दूर होंगे।”
कौंडिन्य ऋषि ने अपनी पत्नी सहित 14 वर्ष तक अनंत भगवान का व्रत किया और उन्हें फिर से सुख-समृद्धि, वैभव और संतति की प्राप्ति हुई।
श्रीकृष्ण ने कहा –“हे धर्मराज! यह अनंत व्रत सभी पापों का नाश करता है, दुख-दरिद्रता दूर करता है और मनुष्य को अखंड धन, धान्य, संतति और वैभव प्रदान करता है। इसे श्रद्धा और भक्ति से करने पर जीवन में कभी अभाव नहीं रहता।”
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