Aditya Hridhay Stotram

Aditya Hridhay Stotram | आदित्य हृदय स्तोत्र

 

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । 
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥

 

अर्थ:

इधर भगवान श्री राम थककर चिंता में लीन हुए रणभूमि में खड़े हुए| उसी समय रावण भी युद्ध के लिए रणभूमि में आ गया| यह सब देखकर ऋषि अगस्त्य भगवान श्री राम के समीप गए और ऐसे बोले|

 

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । 
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । 
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥

 

अर्थ:

सभी के हृदय में बसने वाले हे महाबाहो श्री राम! यह गोपनीय स्तोत्र सुनो| इस चमत्कारी स्तोत्र के जप करने से तुम अवश्य ही अपने शत्रु पर विजय पा लोगे| यह आदित्य हृदय स्तोत्र सबसे पवित्र और सभी शत्रुओं का नाश करने वाला स्तोत्र है| इसका जप करने से हमेशा ही विजय की प्राप्ति होती है| यह अत्यंत ही कल्याणकारी स्तोत्र है|

 

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । 
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥ 
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । 
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥

 

अर्थ:

यह स्तोत्र सभी कार्यो में मंगल, पापों का नाश करने वाला है| इसी के साथ यह चिंता और शौक को भी दूर करता है और मनुष्य की आयु में भी वृद्धि करता है| जो कि अनंत किरणों से शोभायमान, नित्य उदय होने वाली, देवों और असुरों के द्वारा नमस्कृत है| तुम इस सम्पूर्ण विश्व में प्रकाश फ़ैलाने वाले संसार के स्वामी भगवान सूर्य देव का पूजन करो|

 

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । 
एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । 
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥

 

अर्थ:

महर्षि अगस्त्य कहते है कि सभी देवता इनके रूप है| सूर्य देव अपने प्रकाश की किरणों से इस जगत को स्फूर्ति प्रदान करते है| सूर्यदेव ही अपनी ऊर्जा के माध्यम से ही इस सृष्टि में देवतागण और असुरों दोनों का पालन करते है| यही है जो ब्रह्मा, स्कन्द, शिव, इंद्र, कुबेर, प्रजापति, समय, काल, यम, चंद्रमा और वरुण आदि को प्रकट करते है|

 

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । 
वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । 
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥

 

अर्थ:

यह पितरों, वसु, साध्य, अश्विनीकुमारों, मरूदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण और ऋतुओं को जन्म देने वाले प्रभा के पुंज है| इनको अलग – अलग नामों से जैसे – आदित्य, सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्व व्याप्त), खग, पूषा, गभस्तिमान, भानु, हिरण्येता, दिवाकर और

 

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । 
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥

हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । 
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥

 

अर्थ:

हरिदश्व, सहस्रार्चि, सप्तसप्ति (सात घोड़ो वाले), मरिचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमन्थन(अंधकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तन्डक, हिरण्यगर्भ, शिशिर(स्वभाव से सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी उत्पन्न करने वाले), भास्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदितिपुत्र, शंख, शीत का नाश करने वाले और

 

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । 
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥

आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। 
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥

 

अर्थ:

व्योमनाथ, तमभेदी, ऋग ,यजु और सामवेद के पारगामी, धन वृष्टि, अपाम मित्र, विन्ध्यावीथिप्लवंग (आकाश में तीव्र गति से चलने वाले), आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल, सर्वतापन, कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोदभव है|

 

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । 
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । 
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥

 

अर्थ:

नक्षत्र, ग्रह और तारों के अधिपति, विश्वभावन (विश्व की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी तेजस्वी और द्वादशात्मा को नमस्कार है| पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है| ज्योतिर्गणों के स्वामी तथा दिन के अधिपति को नमस्कार है|

 

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । 
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥

 

अर्थ:

जो जय के रूप है, विजय के रूप है, हरे रंग के घोड़ों से युक्त रथ वाले भगवान को नमस्कार है| सहस्त्रों किरणों से प्रभावान आदित्य को बारम्बार नमस्कार है| उग्र, वीर और सारंग भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है| कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेज वाले मार्तण्ड को नमन है|

 

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । 
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । 
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥

 

अर्थ:

आप ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों के स्वामी है| सूर आपकी संज्ञा है| यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है| आप प्रकाश से परिपूर्ण है| सबको स्वाहा: करने वाली अग्नि के स्वरूप है| रौद्र रूप आपको नमस्कार है| अज्ञान, अन्धकार के नाशक, शीत के निवारक तथा शत्रुओं के नाशक आपका रूप अप्रमेय है|

 
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । 
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । 
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥

 

अर्थ:

आपकी प्रभा तप्त वर्ण के समान है| आप ही हरि (अज्ञान को हरने वाले), विश्वकर्मा (संसार की रचना करने वाले), तम या अँधेरे के नाशक, प्रकाशरूप और जगत के साक्षी आपको हमारा नमस्कार है| हे रघुनन्दन, भगवान सूर्य देव ही सभी भूतों के संहार, रचना और पालन करने वाले है| यही अपनी किरणों से गर्मी और वर्षा करते है|

 

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । 
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । 
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥

 

अर्थ:

यह देव सभी भूतों में अंतर्स्थित होकर उन्हें सो जाने पर भी जागते रहते है, यही अग्निहोत्री कहलाते है| यही वेद, यज्ञ और यज्ञ से मिलने वाले फल है| यह देव सम्पूर्ण लोकों की क्रिया का फल देने वाले देव है|

 

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । 
कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥ 
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् । 
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥

 

अर्थ:

इसमें महर्षि अगस्त्य भगवान श्री राम से कहते है कि राघव! किसी विपत्ति में, कष्ट में, कठिन मार्ग में तथा किसी भय के समय जो भी सूर्यदेव का कीर्तन या उन्हें याद करता है| उसे किसी भी प्रकार दुःख या पीड़ा सहन नहीं करना पड़ता है| आप एकाग्रचित होकर देवादिदेव सूर्यदेव का पूजन करो, इस आदित्य हृदय स्तोत्र का तीन बार लगातार जप करने से आपको युद्ध में अवश्य ही विजय की प्राप्ति होगी|

 

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । 
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ 
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥

 

अर्थ:

हे महाबाहो इस क्षण आप रावण का वध कर पायेंगे| इस प्रकार ऋषि अगस्त्य आये थे उसी प्रकार वपिस लौट गए| उस समय ऋषि अगस्त्य का यह उपदेश सुनकर महातेजस्वी भगवान श्री राम के सभी शोक दूर हो गई| प्रसन्न और प्रयत्नशील होकर |

 

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । 
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । 
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥

 

अर्थ:

परम हर्षित और शुद्धचित्त होकर भगवान श्री राम ने सूर्य देव की तरफ देखा और तीन बार आदित्य हृदय स्तोत्र का जप किया| उसके पश्चात श्री राम जी ने धनुष उठाकर युद्ध के लिए आये हुए रावण को देखा और उससे युद्ध करने का निश्चय किया|

 

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । 
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥

 

अर्थ:

तब सभी देवताओं के बीच में खड़े भगवान सूर्य देव ने प्रसन्न होकर भगवान श्री राम की तरफ देखा और राक्षस रावण का अंत का समय निकट जानकार प्रसन्नता पूर्वक कहा “अब जल्दी करो”

 

।।संपूर्ण ।।

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