वराहावतार 2025
25 अगस्त 2025,सोमवार
भाद्रपद, शुक्ल २
वराह अवतार की कथा और महत्व
पुराणों के अनुसार:
भगवान विष्णु के दस अवतारों (दशावतार) में तीसरा अवतार वराह अवतार है । यह अवतार उन्होंने पृथ्वी को राक्षसों से बचाने के लिए धारण किया।
सृष्टि के प्रारंभ में हिरण्याक्ष नाम का एक असुर उत्पन्न हुआ। उसने अपनी शक्ति से संपूर्ण देवताओं को पराजित कर दिया और पृथ्वी (भूमि देवी) को समुद्र की गहराइयों में ले जाकर छिपा दिया। इससे समस्त लोकों में अराजकता और असंतुलन फैल गया।
तब देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने वराह (सूअर/जंगली वराह) का रूप धारण किया। उनका रूप अत्यंत विशाल और तेजस्वी था। वराह ने समुद्र में गोता लगाया और गहराई तक जाकर हिरण्याक्ष का वध किया। फिर अपनी दाँतों (दाढ़ों) पर पृथ्वी को उठाकर पुनः जल से बाहर लाए और उसे उसके स्थान पर स्थापित कर दिया।
महत्व:
- धर्म की स्थापना: वराह अवतार इस बात का प्रतीक है कि जब भी अधर्म और अराजकता बढ़ती है, भगवान विष्णु सृष्टि की रक्षा करने अवतरित होते हैं।
- पृथ्वी की रक्षा: यह अवतार “प्रकृति” और “पृथ्वी माता” की रक्षा का संदेश देता है।
- असुर पर विजय: हिरण्याक्ष का वध यह दर्शाता है कि दुष्टता और अहंकार का अंत निश्चित है।
- जीवन का संतुलन: वराह अवतार हमें यह सिखाता है कि ब्रह्मांड में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, और जब असंतुलन होता है तो दिव्य शक्ति उसे पुनः व्यवस्थित करती है।
- भक्ति का महत्व: देवताओं की प्रार्थना पर भगवान का अवतरण यह दिखाता है कि सच्ची भक्ति और आस्था संकट के समय में हमें दिव्य संरक्षण दिला सकती है।
भगवान् वराह की पूजन विधि
भगवान् वराह भगवान् विष्णु का तीसरा अवतार माने जाते हैं। इन्हें धरती माता (भूदेवी) के उद्धारकर्ता के रूप में पूजा जाता है। वराह की पूजा विशेषकर वराह जयंती या भूवराह द्वादशी के दिन की जाती है, लेकिन साधारण दिनों में भी उनका पूजन किया जा सकता है।
पूजन-विधी _
- संकल्प
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान पर भगवान् विष्णु/वराह जी की मूर्ति, चित्र या शालग्राम रखें।
- कलश स्थापना करें और संकल्प लें – “मैं वराह भगवान् की पूजा करके पुण्य प्राप्त करूँ।”
- आवाहन एवं ध्यान
- आसन, आचमन और प्राणायाम करें।
- भगवान् वराह का ध्यान करें – “ॐ वराहाय नमः। पृथिव्याः उद्धारकाय नमः। सर्वदोष नाशकाय नमः।”
- पूजन क्रम
- आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान अर्पित करें।
- गंध, अक्षत, पुष्प, तुलसीदल, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें।
- शंखनाद और घंटा बजाएँ।
- विशेष नैवेद्य
- भगवान् वराह को मीठे फल, खीर, दही, दूध और तुलसीदल विशेष प्रिय हैं।
- मंत्र-जप
- वराह गायत्री मंत्र का जप करें:
ॐ भूवराहाय विद्महे
महापुरुषाय धीमहि
तन्नो वराहः प्रचोदयात् ॥
“ॐ नमो भगवते वराहाय” मंत्र का जप ११, २१ या १०८ बार करें।
- कथा / स्तुति
- वराह अवतार की कथा का श्रवण/पाठ करें (हिरण्याक्ष से युद्ध और पृथ्वी का उद्धार)।
- वराह स्तोत्र या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- आरती
- अंत में दीप आरती करें – तुलसी की माला अर्पित करें।
पूजा का फल
- वराह भगवान् की पूजा से धन-धान्य की वृद्धि, भूमि-संपत्ति की रक्षा तथा सभी प्रकार के संकटों का निवारण होता है।
- यह पूजा विशेषकर भूमि-संबंधी कार्यों, गृह निर्माण, संपत्ति विवाद आदि के समाधान में बहुत शुभ मानी जाती है।
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