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महालक्ष्मी का यह व्रत करने से धन संपदा में वृद्धि होगी - पूजन विधि  - व्रत की कथा

महालक्ष्मी व्रत( गज लक्ष्मी व्रत)

लक्ष्मी जी को धन की देवी माना गया है, लक्ष्मी जी का आशीर्वाद जिस पर होता है, उसका जीवन सुखों से परिपूर्ण हो जाता है। व्यक्ति निरंतर सफलता की ओर अग्रसर रहता है। पित्र पक्ष के बीच में महालक्ष्मी अर्थात गज लक्ष्मी व्रत किया जाता है यह व्रत राधा अष्टमी से शुरू होता है और पित्र पक्ष की अष्टमी तक चलता है। पित्र पक्ष की अष्टमी पर इस व्रत का समापन होता है, इस व्रत को गज लक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। महालक्ष्मी व्रत अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी 06 अक्टूबर 2023 को गज लक्ष्मी व्रत है, पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने से लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है और धन संपदा में वृद्धि होती है।

 

पूजन विधि

भविष्योत्तर पुराण में लिखा हुआ है कि यह माया, प्रकृति और शक्ति आदि नामों से तीनों लोकों में प्रसिद्ध महालक्ष्मी देवी को प्रसन्न करने का महान व्रत है यह व्रत भादो के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से क्वार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक किया जाता है। व्रत प्रारंभ करने के दिन 16 बार कुल्ला कर स्नान आदि से पवित्र हो तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करें तत्पश्चात कलावे का सूत्र लेकर उसमें 16 गांठ लगाएं तथा उसे चमेली पुष्प, धूप आदि सुगंधित पदार्थों के मध्य रखें। सूत्र की 16 गांठो को महालक्ष्मी नमः मंत्र से अभिमंत्रित करें और अपनी कामना की पूर्ति की प्रार्थना करते हुए अब उसे अपने हाथ में बांधे स्त्री को बाएं हाथ तथा पुरुष को दाहिने हाथ में सूत्र बांधना चाहिए। इसके पश्चात अपने हाथ में जल लेकर इस व्रत को करने का संकल्प करें तथा महालक्ष्मी देवी का ध्यान करते हुए प्रार्थना करें, कि मैं आपकी सेवा में भक्ति पूर्वक तत्पर रहकर इस महा व्रत का पालन कर सकूं तथा उसे निर्विघ्नं पूर्ण कर सकूं ऐसी शक्ति और धीरता मुझे प्रदान करें फिर दुब  के पौधे को  जल में भिगो भिगो कर अपने सिर, हाथ, पांव का मार्जन करें तथा दुब और अक्षत हाथ में रखकर कथा सुने या पढ़ें। इस प्रकार 15 दिन नित्य दुब तथा अक्षत हाथ में लेकर कथा सुनते रहे। 16 वे दिन अष्टमी को सायं काल स्नान कर सफेद वस्त्र पहने और अत्यंत सुंदर मंडप बनाकर लक्ष्मी जी की सुंदर मूर्ति अष्टदल श्वेत कमल पर दोनों ओर दो हाथी की मूर्तियों सहित पधरावे। पंचामृत से मूर्ति को स्नान कराएं इस प्रकार षोडशोपचार द्वारा पूजन करें या किसी विद्वान पंडित से कराएं महालक्ष्मी देवी का आवाहन करें ध्यान एवं स्तुति करें। व्रती ब्राह्मण या ब्राह्मणों को भोजन कराएं उन्हें यथाशक्ति दान दक्षिणा देवे। पूजन में हवन, श्री सूक्त पाठ, आरती आदि भी की जाती है उद्यापन करते समय इस सबके अतिरिक्त खाने की वस्तुएं नए सुप में 16 सोलह की संख्या में रखें तथा दूसरे सूप से ढक कर महालक्ष्मी को अर्पण करें और 16 ब्राह्मणों को भोजन करा कर दान दक्षिणा देकर विदा करें तत्पश्चात स्वयं भोजन करें। 

 

श्री महालक्ष्मी व्रत की कथा 

एक समय धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण भगवान को प्रसन्न चित्र देखकर कहा हे त्रिलोकीनाथ समस्त ऐश्वर्या के स्वामी कृपा कर कोई ऐसा व्रत बतलाइए जो सब व्रतों में श्रेष्ठ एवं ऐश्वर्य सुख देने वाला हो तथा इस व्रत को करके मनुष्य नाना प्रकार के सुख, स्त्री पुत्र, आयु, महल, हाथी, घोड़ा का फल भोग सकें। श्री कृष्ण जी बोले हे राजन् सुनो सतयुग में जब वत्रासुर आदि असुरों ने स्वर्ग लोक पर अपना अधिकार कर लिया तब दुखी हो इंद्र ने ऐसा ही प्रश्न देवर्षि नारद से पूछा था यह सुन नारद जी बोले हे देवराज इंद्र मैं तुमको एक ऐसा उपाय बताता हूं जो सर्व मंगल कारी है, इस विषय में एक वृतांत सुनो प्राचीन काल में एक बहुत सुंदर अपूर्व नगर था वहां की भूमि बड़ी रमणीक थी तरह-तरह के रत्नों से विभूषित भूमि एवं पर्वत थे यहां सुंदर चंचल नेत्रों वाली स्त्रियों के  कटाक्ष से कामदेव तीनों लोगों को वश में करता था उस नगर में चारों पदार्थ ,धर्म ,अर्थ, काम ,मोक्ष थे उसके विचित्र रचना देखकर विश्वकर्मा भी लज्जित होते थे उस नगर में मंगल सेन नाम का एक राजा राज्य करता था उसकी चिल्ल देवी और चोल देवी नाम की दो रानियां थी 1 दिन राजा अपनी प्रिय रानी चोल देवी के साथ अपने महल की छत पर बैठा हुआ था वहां उसने समुद्र के जल से घिरा हुआ एक रमणीक स्थान देखा उसे देख राजा प्रेमा दूर हो अपनी प्रिय रानी चोल देवी से बोला है सुमुखी देखो यहां पर तुम्हारी प्रसन्नता के लिए नंदनवन को लज्जित करने वाला एक सुंदर बाग लगवा लूंगा और अपनी प्रिया को प्रसनार्थ राजा ने बगीचा लगवा दिया कुछ दिन बाद वह बाग, वृक्षों ,लताओं ,फल ,फूल और रंग-बिरंगे पक्षियों की चहचहाहट से अपनी अद्भुत छटा दिखाने लगा एक दिन उस बाग में बड़ा भयंकर प्रलय काल के समान एक सूकर आया और उसने सारे बगीचे को नष्ट कर दिया बहुत से बाग के रक्षक भी मार गिराए कुछ रक्षक उसके भय से व्याकुल हो अपनी जान बचाकर राजा के पास पहुंचे और राजा से सारा हाल कहा यह सुन राजा बड़ा कुपित हुआ और अपनी सेना से बोला तुम शीघ्र वहां जाकर उस भयंकर शूकर को मार डालो राजा की आज्ञा पाकर सेना चल दी और घोड़े पर बैठकर साथ में राजा भी चल दिया चारों ओर से बगीचे को घेरकर राजा ने सैनिकों से कहा कि जिस मार्ग से छूकर निकल कर भाग जाएगा और उस मार्ग का कोई भी रक्षक उसे ना मार सकेगा तो मैं उसका सिर काट डालूंगा तथा बाग के एक और राजा स्वयं अपना घोड़ा और आकर खड़ा हो गया देवयोग से वह सूकर राजा से ही निकल कर भाग गया राजा बड़ा लज्जित होता हुआ घोड़े को चाबुक से मारता हुआ उसका पीछा करने लगा पीछा करते-करते बहुत सी हूं व्याघ्र आदि हिंसक जीवों से युक्त घोर जंगल में पहुंच गया वहां ताल तमाल ,हीताल शाल अर्जुन लता आदि के वृक्ष थे राजा जंगल में चारों ओर उसे देखने लगा आगे चलकर शूकर राजा के सामने आया राजा ने देखते ही उसे भला मार दिया और भले के लगते ही उस सुपर ने अपना शरीर छोड़ दिया बहुत सुंदर गंधर्व शरीर धारण कर विमान में बैठ अपने लोक को जाते हुए राजा मंगलसेन से बोला है पृथ्वी पति आप का कल्याण हो आपने मेरा उद्धार किया है अब मैं आपको अपने शाप की कथा सुनाता हूं मैं चित्ररथ नाम का गंधर्व हूं एक बार देव समूह में ब्रह्मा जी बैठे हुए थे कि चंचतपुत आदि तालों के साथ में सप्त स्वर में उत्तर गान कर रहा था गाते गाते मेरी ताल बिगड़ गई इस पर क्रोधित होकर ब्रह्माजी ने मुझे शुकर होने का श्राप दिया सिर्फ प्रार्थना करने पर उन्होंने कहा तेरा उद्धार धर्मात्मा राजा मंगलसेन के हाथों से होगा अतः मैं अदम योनि को छोड़कर अपने गंधर्व स्वरूप को प्राप्त हो गया हूं हे राजन् मैं वरदान स्वरुप देवताओं को दुर्लभ चारों फल धर्म अर्थ काम मोक्ष का दाता एक व्रत बतलाता हूं यह व्रत महालक्ष्मी जी का है इसके प्रभाव से आप चक्रवर्ती राजा होंगे अब आप अपनी राजधानी वापस चाहिए नारद जी बोले हे इंद्र इस प्रकार कहा गंधर्व अंतर्धान हो गया और राजा मंगलसेन अपनी राजधानी को वापस लौटे कि मार्ग में उन्हें बगल में ब्रह्मचर्य लिए हुए एक ब्राह्मण पुत्र अपनी ओर आते नजर पड़े राजा मुस्कुराते हुए उनसे बोले हैं बटुक तुम देवता दैत्य गंधर्व हो अथवा राक्षस इनमें से आप कौन हैं मुझे सच सच बता दें जो आप इस घोर जंगल में आए हैं यह सुन ब्राह्मण पुत्र राजा को आशीर्वाद देते हुए बोला राजन मैं आपके ही देश में पैदा हुआ हूं और आपके साथ साथ ही यहां आया हूं अतः मुझे यथोचित आज्ञा दीजिए भगवान श्रीकृष्ण बोले हैं धर्मराज इस प्रकार उसके पूछने पर राजा ने कहा है विप्र तुम्हारा नाम आज से नूतन होगा अब तुम किसी सरोवर में से ठंडा जल लाओ राजा की आज्ञा पाकर नूतन राजा को एक सुंदर वृक्ष के नीचे बिठाकर आप घोड़े पर सवार हो जल की खोज में चल दिया आगे चलकर उसने रंग बिरंगी पक्षी देखें वह वहीं पर चल पड़ा थोड़ी देर में वह सरोवर के पास पहुंच गया यह सरोवर बहुत ही रमणीक था ऐसा प्रतीत होता था कि यहां भगवान नारायण का ही निवास स्थान है सुंदर-सुंदर कमलों से सुशोभित चक्रवाक आदि पक्षियों से युक्त तेज हवा से उठने वाली लहरों को शांत करने वाला मीठे जल वाला महर्षि अगस्त्य कि त्रिशा शांत करने वाला शीतल जल से परिपूर्ण था जैसे ही वह आगे बढ़ा कि उसका घोड़ा कीचड़ में फंस गया अतः वह घोड़े पर से उतर कर सरोवर के चारों ओर देखने लगा समीप ही उसने सुंदर-सुंदर  वस्त्र आभूषणों से सुसज्जित मृगनयनी स्त्रियों को देखा जो मधुर ध्वनि से मंगल गान करती हुई पूजा कर रही थी नूतन अपने दोनों हाथ जोड़ स्त्रियों के पास जाकर विनम्र भाव से बोला है माताओं आप सब बड़ी श्रद्धा पूर्वक किसकी पूजा कर रही हैं और इस की क्या विधि है तथा क्या फल है सच-सच मुझे बतावे नूतन की मधुर वाणी सुन बे बोली है विप्र भक्ति भाव से श्रद्धा युक्त होकर सुनो जो भगवती माया प्रकृति और शक्ति नाम से प्रसिद्ध है हम उसी महालक्ष्मी का व्रत कर रहे हैं उसी व्रत की कथा कह रहे हैं।

 

स्त्रियों द्वारा नूतन को व्रत की विधि कहना 


उपरोक्त अनुसार पूजन विधि संपन्न करें ,तत्पश्चात पूर्व की ओर मुख करके पवित्र आसन पर बैठकर सफेद मोतियों से युक्त अष्टदल का कमल बना वे उस पर कमलासन ,मंद मंद मुस्कान करती हुई शरद के तुल्य कांति वाली चतुर्भुजी दोनों हाथों में कमल लिए हुए श्वेत वस्त्र धारण आभूषणों से विभूषित अभय वर देने वाली दोनों और हाथियों की सूंड के जल से खींचे जाने वाली श्री महालक्ष्मी जी का ध्यान करके कपूर अगरबत्ती चंदन से भगवती का चित्र बनाकर आह्वान करें कि है महालक्ष्मी भगवान विष्णु के पास से आप यहां आ जाओ आपके लिए ही मैंने जो षोडशोपचार पूजन सामग्री एकत्रित की है है विप्र इस प्रकार इस प्रकार 16 दिन समाप्त होने पर व्रत करता को श्रद्धा अनुसार उद्यापन करना चाहिए उद्यापन विधि इस प्रकार है स्वर्ण के पत्र से गौ के सिंह मडवा कर तथा सोना एवं अन्य वस्त्र आदि किसी वेद पाठी ब्राह्मण को दान में दें यदि इतना ना हो सके तो यथाशक्ति द्रव्य दे दें अथवा 16 ब्राह्मणों को जीमा कर वस्त्र आदि की दक्षिणा देवें हे विप्र पुत्र हमने तुमको सर्वोत्तम व्रत बतला दिया है जिसके करने मात्र से इच्छित फल प्राप्त होता है इस व्रत को तुम करो अपने राजा से कराओ तथा और जो श्रद्धा से करना चाहे उसे भी कराओ भगवान बोले हैं युधिष्ठिर इस प्रकार इस व्रत को स्त्रियों के मुख से सुनकर नूतन बड़ा प्रसन्न हुआ और उनको प्रणाम कर अपने घोड़े को कीचड़ में से निकाल कर ठंडा पानी पिलाया और कमल के पत्तों का दो ना बनाकर उसमें पानी ले घोड़े पर बैठ राजा के पास आया राजा को जल पिलाकर नूतन बोला है राजन आज मैं यहां पर जो कुछ स्त्रियों से सुन कर आया हूं उसे ध्यान से सुनो इस प्रकार का सारा हाल सुनकर उस व्रत को नूतन और राजा दोनों ने किया उस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ब्राह्मण नूतन और राजा में श्रेष्ठ राजा मंगल हो गया तदुपरांत राजा ब्राह्मण को साथ ले घोड़े पर सवार हो अपने नगर को चल दिया राजा का आना सुनकर सब नगरवासी बड़े प्रसन्न हुए और भेट आदि वस्तुएं लेकर बाजे के साथ राजा की अगवानी करने चले गए चारों और घंटा और घड़ियाल के शब्द होने लगे ऐसा मालूम होता था कि खुशी के मारे सारानगर नाच रहा है सोलह श्रंगार की हुई गज गामिनी स्त्रियां भी मंगल गीत गाती हुई राजा की अगवानी को आई नगर वासियों द्वारा सत्कार किया गया राजा ब्राह्मण कुमार नूतन के साथ घोड़े पर से उतर कर अपने महल में रानी चोल देवी के पास गया रानी चोल देवी राजा के हाथ में सूत्र बांधा देख क्रोधित हुई परंतु क्रोध को छुपाकर विचार करने लगी राजा शिकार के बहाने किसी अन्य स्त्री से प्रेम आलाप करने लगा है इसी कारण इसकी बाह में उस स्त्री ने अपने सौभाग्य के लिए यह डोरा बांध दिया है और साथ ही मुझे देखने के लिए इस ब्राह्मण को भेजा है अतः क्रोधित हो उसने डोरेको राजा की बाहों में से तोड़ कर फेंक दिया राजा उसकी करतूत न समझ सका क्योंकि वह सेवकों तथा मंत्रियों को जंगल का सारा हाल बता रहा था उसी समय राजा की दूसरी रानी चिल्ल देवी की एक दासी राजा को देखने वहां आई उसने भूमि पर पड़े उस डोरे को उठा लिया और उस ब्राह्मण से डौरे के बारे में सारा विवरण पूछा दासी ने सारा विधान जानकर अपनी स्वामी नी चिल्ल देवी से जाकर कहा और वह राजा का सूत्र भी दे दिया रानी ने उसी समय नूतन को बुलावा भेजा और उसके बतलाए गए व्रत को विधान सहित करने लगी भगवान बोले है पांडु नंदन युधिष्ठिर 1 वर्ष बीतने पर लक्ष्मी पूजा के दिन रानी चिल्लदेवी के महल में अपार बाजे बजने लगे  यह देख राजा को लक्ष्मी पूजन की याद आई राजा अपनी बाहों में बंधे सूत्र को ना देख नूतन ने रानी चोल देवी द्वारा उसे तोड़कर फेके जाने का सारा हाल राजा को बता दिया यह सुन राजा क्रोधित हो रानी चोल देवी से बोला अरे दुर्बुद्धि अब मैं तेरे महल में लक्ष्मी पूजन ना करके रानी चिल्ल देवी के महल में लक्ष्मी पूजन करूंगा यह कर राजा चिल्लदेवी के महल को चला गया इसी बीच लक्ष्मी जी बुढ़िया का रूप बनाकर परीक्षा लेने के लिए रानी चोल देवी के घर गई रानी चोल देवी ने उस का निरादर करते हुए बोला अरे दुष्ट तू कौन है मेरे घर कैसे आई चल भाग यहां से इस प्रकार लक्ष्मी जी रानी चोल देवी से अपमानित होने पर उसे श्राप देती हुई बोली मूर्ख तूने मेरा अपमान किया है अतः तू शूकर मुखी हो जा और आज से इस मंगलपुर का नाम कोल्हापुर हो जावेगा फिर वृद्धा रूप लक्ष्मी जी वहां से चलकर परीक्षा लेने के लिए चिल्ला देवी के महल गई वहां रानी ने उनका बड़ा आदर सम्मान किया रानी से सम्मानित हो लक्ष्मी जी ने वृद्धा का रूप से आप साक्षात अपना लक्ष्मी स्वरूप धारण कर लिया यह देख रानी चिल्ल देवी ने लक्ष्मी जी को साष्टांग प्रणाम कर बड़े प्रेम से नाना प्रकार से उनका पूजन किया भगवती लक्ष्मी चिल्लदेवी से प्रसन्न होकर बोली है चिल्ल देवी मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं मनचाहा वरदान मांग लो देवी बोली है सुरेश्वरी कमलासन अंबे जो भी प्राणी इस व्रत को करें और जब तक चंद्र सूर्य आकाश में रहे तब तक आप उसके घर को संपूर्ण ऐश्वर्य से परिपूर्ण रखें उसके घर में आप सदैव विराजमान रहे वह मेरे पति सहित आपकी यह कथा सारी पृथ्वी पर विख्यात हो हे धर्मराज रानी से भगवती लक्ष्मी तथास्तु कहा वही अंतर्ध्यान हो गई पश्चात राजा मंगल ने रानी चिल्ल देवी के साथ बड़ी श्रद्धा से पूजन व्रत किया दुराचारीनी चोल देवी ईर्ष्या वश होकर रानी चिल्ल देवी के महल में जाने लगी वहां बैठे पहरेदारो ने उसे अंदर जाने से रोक दिया क्योंकि लक्ष्मी जी के शाप के कारण वह शूकर के समान दिखाई पड़ती थी रानी दिखलाई नहीं देती थी तब वह दुखी हो जंगल में महर्षि अंगिरा के पास गई उसकी यह दशा देखकर मुनि अंगिरा ने अपनी ज्ञान दृष्टि द्वारा उसकी सारी बातें जान ली तब मुनि ने लक्ष्मी जी के कुपित होने का कारण उससे कहा और स्वयं श्री लक्ष्मी जी से उसके अपराध की क्षमा याचना कर उससे श्री लक्ष्मी जी का व्रत पूजन करवाया व्रत के प्रभाव से वह रानी पुनः अपने लावण्य में स्वरूप को प्राप्त कर कीर्ति पाने लगी तदनंतर उस वन में राजा शिकार खेलने को गया वहां मुनि अंगिरा की कुटी में रूप लावण्य से युक्त उस अनुपम देवी को देख राजा मंगल बोला है महर्षि यह अपनी सुंदरता से इस वन को प्रकाशमान करने वाली स्त्री कौन है इसका कारण मुझसे कहो राजा की बात सुन महर्षि अंगिरा ने उसकी सारी कथा सुनकर रानी चोल देवी उसे सौंप दी राजा प्रसन्न चित्त हो रानी चोल देवी को साथ लेकर अपनी राजधानी आया और रानी चिल्ल देवी सहित पृथ्वी के नाना प्रकार के भोग भोगने लगा दोनों रानी बड़ी प्रेम से मिलकर रहने लगी और राजा की सेवा करने लगी राजा मंगल पृथ्वी के समस्त सुख भोग कर अंत में स्वर्ग को गया और मंगल नक्षत्र के नाम से विख्यात हुआ नारद जी बोले हे इंद्र समस्त व्रतों में श्रेष्ठ श्री महालक्ष्मी जी का व्रत मैंने तुमसे कहा है जो व्यक्ति इस व्रत को करेगा वह धर्म अर्थ काम मोक्ष चारों पदार्थों का भागी होगा तुम भी व्रत को करो जिससे धन धान्य भूमि कीर्ति आयु यश शोभा घोड़ा पुत्र पुत्र आदि प्राप्त हूं और तुम्हारी कीर्ति फैलती रहे इंद्र नारद जी को प्रणाम कर अपने लोक को गए और व्रत किया भगवान श्रीकृष्ण बोले हैं युधिष्ठिर नारद जी से देवराज इंद्र द्वारा पूछे गए श्रेष्ठ व्रत को मैंने तुम्हें बता दिया जो सांसारिक और पारलौकिक सुखों को देने वाला है।

जय मां भगवती लक्ष्मी

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