शनि प्रदोष
प्रदोष व्रत अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला होता है। यह व्रत प्रत्येक माह के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है । प्रत्येक वार के प्रदोष व्रत की पूजन विधि अलग-अलग मानी गई है। व्रती ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान का ध्यान करते हुए व्रत आरंभ करते हैं। इस व्रत के मुख्य देवता शिव माने गए हैं। उनके साथ पार्वती जी की पूजन भी की जाती है। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है
शनि प्रदोष व्रत कथा
शनि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर सेठ था, सेठ जी के घर में हर प्रकार की सुख सुविधाएं थी लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुखी रहते थे। काफी सोच विचार करने के बाद सेठ जी ने अपना सारा काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थ यात्रा पर निकल गए ।अपने नगर के बाहर जाते ही उन्हें एक साधु मिले सेठ जी साधु से आशीर्वाद लेने के लिए उनके समीप बैठ गए साधु ने जब आंख खोली तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं। साधु ने सेठ और सेठानी से कहा मैं तुम्हारा दुख जानता हूं। तुम शनि दोष व्रत करो इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ सेठानी को प्रदोष व्रत की संपूर्ण विधि बतलाई दोनों सेठ सेठानी साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थ यात्रा के लिए आगे चल पड़े तीर्थ यात्रा के दौरान लौटने के बाद सेठ सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ।