आंवला नवमीं कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती हैं, इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता हैं। इस वर्ष 5 नवम्बर को अक्षय नवमी आ रही हैं। अक्षय नवमी के दिन स्त्रियां परिवार के लिए आरोग्यता व सुख -संमृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने का महत्व है।
आंवला नवमीं क्यों विशेष हैं?
आंवला नवमी के ही दिन भगवान ने कूष्मांडक नामक दैत्य को मारा था। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने कंस वध करने से पूर्व तीन वनों की परिक्रमा की थी। पदम पुराण के अनुसार आंवले के वृक्ष में श्री हरि व शिवजी का वास होता हैं। इस दिन किया गया जप तप पूजा दान से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पूजन विधि व विशेष महत्व…
इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर आंवले के वृक्ष के नीचे झाड़ू लगावे, स्थान शुद्ध कर आसन बिछावें, पूर्व मुखी होकर आंवले की जड़ को कच्चे दूध व शुद्ध जल से सिंचे , कुमकुम हल्दी से पूजन करे दीपदान करे।
कच्चे सूत से ॐ धात्र्यै नमः मंत्र उच्चारण करते हुए 8 या 108 परिक्रमा ले व कपूर से आरती करें।आंवले के वृक्ष की छाव में अगर संभव हो तो ब्राह्मण को भोजन करे तत्पश्चात स्वयं भोजन करे।
::::कथा::::
धार्मिक कथाओं के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आई। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की उनकी इच्छा हुई। माता लक्ष्मी ने विचार किया की एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है? तभी उन्हें ख्याल आया की तुलसी और बेल के गुण एक साथ आंवले में पाएं जाते है। तुलसी भगवान विष्णु जी को प्रिय है और बेल शिव जी को, आंवले के वृक्ष को विष्णु जी और शिव जी का प्रतिक चिन्ह मानकर माँ लक्ष्मी जी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की, पूजा से प्रस्सन होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के निचे भोजन बनाकर विष्णु और शिव जी को भोजन कराया, तद्पच्यात माता लक्ष्मी ने भोजन किया। जिस दिन यह हुआ उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी थी और तभी से यह परम्परा चली आ रही है।
आंवला नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के निचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए।